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Mater Circular - 66 - PENALTIES AND DISCIPLINARY AUTHORITIES

(HINDI)

 

Mater Circular - 66 - PENALTIES AND DISCIPLINARY AUTHORITIES

शास्तियां तथा अनुशासनिक प्राधिकारी प्राधिकारी


रेल सेवकों के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई, रेल सेवक (अनुशासन और अपील) नियम, 968 के अनुसार विनियमित की जाती है. इन नियमों के भाग III के नियम सं. 6,7 और 8 शास्तियों और अनुशासनिक प्राधिकारियों से संबंधित है.

2.  किसी रेल सेवक पर इन नियमों के भाग IV में निर्धारित उचित कार्यविधि का अनुसरण करने के बाद, ठोस और पर्याप्त कारणों के आधार पर नियम 6 में विनिर्दिष्ट शास्तियां अधिरोपित की जा सकती हैं. इन शास्तियों को दो कोटियों-छोटी और बड़ी-में वर्गीकृत किया गया है. छह छोटी शास्तियां तथा पांच बड़ी शास्तियां हैं जिनकी सूची नीचे दी गई है :-

छोटी शास्तियां


(i) परिनिंदा करना;
(ii) विनिर्दिष्ट अवधि तक पदोन्नति रोके रखना;
(iii) उपेक्षा द्वारा या आदेशों को भंग करने से सरकार या रेल प्रशासन को हुई धन संबंधी हानि के संपूर्ण या किसी भाग की उसके वेतन से वसूली;

(iii -क) सुविधा पासों या सुविधा टिकट आदेशों या दोनों की सुविधा रोकना;
(iii - ख) बिना किसी संचयी प्रभाव के तथा उसकी पेंशन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना तीन वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए काल वेतनमान (टाइम स्केल) के निचले प्रक्रम पर अवनति-

(iv) विनिर्दिष्ट कालावधि के लिए वेतन वृद्धियों को इन अतिरिक्त निदेशों के साथ रोके रखना कि ऐसी कालावधि के अवसान पर, यह उसकी भावी वेतन वृद्धियों को रोकने का प्रभाव रखेगा या नहीं रखेगा.


बड़ी शास्तियां
(v) खंड iii (-ख) में यथा उपबंधित के सिवाय, विनिर्दिष्ट कालावधि के लिए वेतन के काल  वेतनमान में निचले प्रक्रम में अवनति इन अतिरिक्त निदेशों के साथ कि ऐसी कालावधि के अवसान पर, यह उसकी भावी वेतन वृद्धियों को रोकने का प्रभाव रखेगा या नहीं रखेगा.

 

(vi) वेतन ग्रेड पद या सेवा के निचले काल वेतनमान में अवनति, उस ग्रेड या पद या सेवा में, जिससे रेल सेवक अवनत किया गया था, प्रत्यावर्तन की शर्तों और उस श्रेणी, पद या सेवा में ऐसे अत्यावर्तन पर उसकी वरिष्ठता और वेतन के बारे में अतिरिक्त निदेशों सहित या रहित;

 

(vii) अनिवार्य सेवानिवृत्ति 

 

(viii ) सेवा से हटाया जाना, जो सरकार या रेल प्रशासन के अधीन भावी नियोजन के लिए निरहता नहीं होगी.

 

(ix) सेवा से पदच्युति, जो सरकार या रेल प्रशासन के अधीन भावी नियोजन के लिए सामान्यता: निरहता होगी.

  

3. नियम (iii-ख) की शास्ति अर्थात्‌ बिना किसी संचयी प्रभाव के तथा पेंशन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना तीन वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए उसी काल वेतनमान के निचले प्रक्रम पर अवनति, को नियम 6(v) की बड़ी शास्ति अर्थात काल वेतनमान के निचले स्तर पर अवनति में से अलग किया गया है तथा पासों/सुविधा टिकट आदेशों को रोके रखने की शास्ति के पश्चात इसे रखा गया है. नियम 6(iii ख) में विनिर्दिष्ट तीनों शर्तों को, अर्थात शास्ति की कालावधि तीन वर्ष से अधिक की नहीं होनी चाहिए. शास्ति संचयी प्रभाव के बगेर होनी चाहिए था शास्ति का रेल सेवक की पेंशन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, नियम (2) के अधीन वेतन वृद्धियों को रोके रखने की शास्ति को अधिरोपित करने से संबंधित उपबंधों से लिया गया है. नियम (2) में यह शर्त है कि इस तथ्य के बावजूद कि वेतनवृद्धियों को रोके रखना छोटी शास्ति है, लेकिन यदि तीन वर्ष से अधिक की कालावधि के लिए वेतनवृद्धियां रोक ली जाती हैं यासंचयी प्रभाव सहित अथवा पेंशनीय लाभों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो नियम 9 के अधीन जांच की जानी चाहिए जैसा कि बड़ी शास्ति के लिए विहित है इसलिए, वेतनमान के निचले स्तर पर अवनति एक छोटी शास्ति हो, इसके लिए नियम 6(॥॥-ख) में विनिर्दिष्ट सभी तीनों शर्तों पूरी होनी चाहिए.

 

(नियम 6 (iii -ख) को बोर्ड की दिनांक 6..90 की अधिसूचना सं. ई (डी एंड ए) 90. आर जी 6-42 के अंतर्गत समाविष्ट किया गया था.)

 

4. किसी कर्मचारी के विरूद्ध ऐसे कदाचार के संबंध में जो उसने अपने नियोजन से पहले किया है और यदि कदाचार इस प्रकार का है कि उसका मौजूदा नियोजन के साथ युक्तिसंगत संबंध तथा इससे वह सेवा में बने रहने के योग्य नहीं रहता तथा अनुपयुक्त हो जाता है, तो कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई की सकती है.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 1.6.68 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 67 आर जी-6- II)

 

5. शास्ति की मात्रा के संबंध में विशेष उपबंध विशेष उपबंध : किसी मामले में शास्ति अधिरोपित करने का विनिश्चय अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा मामले के सभी तथ्यों और परिस्थिति को ध्यान में रखकर किया जाएगा. बहरहाल मामलों की कतिपय किस्मों में विशिष्ट शास्ति अधिरोपित करने के लिए विद्यमान विशेष उपबंध नीचे दिए गए हैं :-

 

(I) . किसी ऐसे कार्य या लोप का, जो रेल गाड़ियों की टक्करों में परिणत हुआ हो या सामान्यतः परिणत हो गया होता, सामान्यतः नियम 6 के खंड (viii) और (ix) में विनिर्दिष्ट शास्तियों (अर्थात सेवा से हटाया जाना या सेवा से पदच्युति) में से एक शास्ति अधिरोपित की जाएगी.

 

(ii) खतरे का रेलवे सिगनल पार करने में दोषी पाए गए व्यक्तियों के मामले में सामान्यतः नियम 6 के खंड (v) से (ix) में विनिर्दिष्ट शास्तियों (अर्थात्‌ कोई एक बड़ी शास्ति) में से एक शास्ति अधिरोपित की जाएगी.

 

(iii) . किसी सरकारी कार्य को करने या उससे प्रविरत करने के हेतु या इनाम के रूप में बैध पारिश्रमिक के अलावा, किसी व्यक्ति से कोई पारितोषिक स्वीकार करने या प्राप्त करने के दोषी पाए गए व्यक्तियों के मामले में सामान्यतः नियम 6 के खंड (viii) या (ix) में विनिर्दिष्ट शास्तियों (अर्थात्‌ सेवा से हटाया जाना या सेवा से पदच्युति) में से एक शास्ति अधिरोपित की जाएगी.

 

उपर्युक्त सभी तीनों मामलों में, जहां ऐसी शास्ति अधिरोपित नहीं की जाती, वहाँ उसका कारण लिखित रूप से रिकॉर्ड किया जाएगा.
(संदर्भ:-नियम 6 का पहला और दूसरा परंतुक)

 

6. वे कारण जिनसे कोई शास्ति नहीं बनती :- 

 

(क) रेल सेवक (अनुशासन और अपील) नियम के अधीन 6 के स्पष्टीकरण के अनुसार निम्नलिखित शास्ति की कोटि में नहीं आते :-

 

(i) उस सेवा को जिसमें वह है या उस पद को, जिसे वह धारित करता है या उसकी नियुक्ति के
निबंधनों को शासित करने वाले नियमों या आदेशों के अनुसार किसी विभागीय परीक्षा को पास
करने में असफल होने पर रेल सेवक की वेतन वृद्धि रोके रखना;

 

(ii) रेल सेवक को काल वेतनमान में दक्षतारोध पर, रोध को पार करने के लिए उसकी अयोग्यता के आधार पर रोकना.(इस अवधारणा को पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों में स्थान नहीं दिया गया है)

 

(iii रेल सेवक के मामले पर विचार करने के बाद अधिष्ठाई या स्थानापन्न हैसियत में प्रोन्नति न देना,

 

(iv) उच्चतर सेवा, ग्रेड या पद में स्थानापन्न रेल सेवक का इस आधार पर कि वह ऐसी उच्चतर सेवा, ग्रेड या पद के लिए अनुपयुक्त समझा गया है या उसके आचरण से असबद्ध किसी प्रशासनिक आधार पर निम्नतर सेवा, ग्रेड या पद पर प्रतिवर्तन;

 

(इसे नीचे पैरा 7 में अन्तर्विष्ट इस विषय से संबंधित अनुदेशों के साथ पढ़ा जाए

 

(v) किसी अन्य सेवा, मेड या पद पर परिवीक्षा पर नियुक्त रेल सेवक का उसकी नियुक्ति के निबंधनों के या ऐसी परिवीक्षा को शासित करने वाले नियमों और आदेशों के अनुसार परिवीक्षा की कालावधि के दौरान या उसकी समाप्ति पर, उसकी स्थायी सेवा, ग्रेड या पद पर प्रतिवर्तन;

 

(vi) ऐसे रेल सेवक की सेवाओं का, जिसकी सेवा केंद्रोय सरकार या राज्य सरकार के किसी अन्य मंत्रालय या विभाग से अथवा केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन किसी प्राधिकरण से उधार ली गई थी, उस सरकार या प्राधिकरण के, जिससे ऐसे रेल कर्मचारी की सेवाएं उधार ली गई थीं, प्रतिस्थापन करना;

 

(vii) रेल सेवक की उसकी अधिवर्षिता या सेवानिवृत्ति से संबंधित उपबंधों के अनुसार,
अनिवार्य सेवानिवृत्ति;

 

(viii) (क)  परिवीक्षा पर नियुक्त रेल सेवक की सेवा का उसकी परिवीक्षा की अवधि के दौरान या अंत में उसकी नियुक्ति के निबंधनों के या ऐसी परिवीक्षा को शासित करने वाले नियमों और आदेशों के अनुसार पर्यवसान.

 

(ख) अस्थायी रेल सेवक की सेवा का, भारतीय रेल स्थापना संहिता (पांचवां संस्करण -1985) की जिल्द । में अंतर्विष्ट नियम 301 के अनुसार पर्यवसान, या

 

(ग) किसी करार के अधीन नियोजित रेल सेवक की सेवा का करार के निबंधनों के अनुसार पर्यवसान-

 

(ix) रेल सेवक का सेवामुक्त करना :

 

(क) शारीरिक योग्यता के अपेक्षित मानकों के अनुरूप न होने के कारण अकुशलता के लिए;
(ख) स्थापन में कमी होने पर,

 

(ग) चेतावनी जारी करना, सरकार की अप्रसन्नता या परामर्श देना, नियमों के अंतर्गत शास्ति नहीं बनती. यह सभी, सुधारात्मक कार्रवाई के रूप में उठाए जाने वाले प्रशासनिक उपाय है.

 

(बोर्ड का दिनांक 10.5.77 का पत्र सं.ई (ई एंड ए) 77 आर जी 6-20)

 

7. प्रतिवर्तन से संबंधित उपबंध

 

(i) हालांकि असंतोषजनक कार्य के लिए निम्नतर पद पर प्रतिवर्तन शास्ति नहीं है, फिर भी किसी रेल सेवक का जिसने उच्चतर मेड में/पद पर 8 महीने या उससे अधिक स्थानापत्न रूप में कार्य किया है, रेल सेवक (अनुशासन और अपील) नियम में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का पालन किए बगैर असंतोषजनक कार्य के लिए, प्रतिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 9.6.65 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 65/आर जी 6-24)

 

(ii) उपर्युक्त बचाव केवल उन कर्मचारियों पर लागू होता है जिन्होंने पैनल में होने के कारण स्थानापन्न पदों के लिए नियमानुसार अधिकार प्राप्त कर लिया है या जो सक्षम प्राधिकरी द्वारा उपयुक्त घोषित किए गए हैं. यह उपबंध उन पर लागू नहीं होता जो 'स्टॉप-गैप' उपाय के रूप में पदोन्नति पर स्थानापन्न के तौर पर काम कर रहे हैं और उन मामलों में भी लागू नहीं होता जहां विधिवत रूप से चयनित कर्मचारी को पैनल के रद्द हो जाने के कारण या  किसी गलती को ठीक करने के परिणामस्वरूप पैनल की स्थिति में परिवर्तन हो जाने के कारण, 8 महीने समाप्त होने के बाद प्रतिवर्तित किया जाना हो.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 5..66 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 65-आर जी 6-24)

 

(iii) बहरहाल, अति विशेष परिस्थितियों में, महाप्रबंधक अपने व्यक्तिगत फैसले के तहत, 18 महीने की समय-सीमा में छूट देते हुए स्थानापन्न कर्मचारी को प्रतिवर्तित कर सकते हैं.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 22.11.66 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 65/आर जी 6-24)

 

(iv) उपर्युक्त पैरा (i),(ii),(ii) में अंतर्विष्ट उपबंधों को रेलों को दोहराया गया.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 20.4.85 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 855आर जी 6-9)

 

(8) शास्तियों में हस्तक्षेप करने में न्यायालय की शक्तियां

 

(i) जहां तक अधिरोपित की जाने वाली शास्ति की मात्रा का प्रश्न है; सक्षम प्राधिकारी के निर्णय में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 31.8.87 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 87/आर जी 6-87)

 

(ii) 1988 की सिविल अपील सं.1709-भारत संघ बनाम परमानंद मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 14.3.89 के अपने फैसले में निम्नलिखित की पुष्टि की थी :-

 

(क)  अनुशासनिक मामलों या दंडों में हस्तक्षेप करने के अधिकरण के अधिकार क्षेत्र की तुलना अपीली अधिकार क्षेत्र से नहीं की जा सकती है.

 

(ख) पूछताछ अधिकारी या सक्षम प्राधिकारी के निष्कर्षो में, जब तक कि ये मनमाने या अनुचित न हों, अधिकरण हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.

 

(ग)यदि पूछताछ, नियमों के अनुरूप तथा नैसर्गिक न्याय के अनुसार की जा रही हो, तो न्याय के अंत में क्या दंड दिया जाना है यह बात अनन्य रूप से सक्षम प्राधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आती है.

  

(घ) यदि शास्ति न्यायोचित तरीके से तथा कदाचार के सिद्ध हो जाने पर अधिरोपित की गई है तो, अधिकरण को अपना निर्णय प्रतिस्थापित करने का अधिकार नहीं है. शास्ति की पर्याप्तता से, यदि वह दुर्भावपूर्ण न हो, अधिकरण का कोई वास्ता नहीं है.

  

(ड.) यदि पूछताछ अधिकारी या सक्षम प्राधिकारी के निर्णय, साक्ष्यों पर आधारित हैं, जिनमें से कुछ असंगत या असंबद्ध हो सकते हैं, तो भी अधिकरण शास्ति के संबंध में हस्तक्षेप नहीं कर सकता.

 

(च) उपर्युक्त से अपवादिक के रूप में, जहां किसी व्यक्ति को दंड-न्यायालय में दोषसिद्ध हो जाने के आधार पर केवल रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम के नियम 14(1) के तहत ही सेवा से हटाया या पदच्युत आदि किया गया है, अधिकरण आपराधिक आरोप की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए शास्ति की पर्याप्तता या इसकी युक्तियुक्तता की जांच कर सकता है.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 8.6.89 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 87आर जी 6-87)

 

(iii) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम समरेंद्र किशोर एंडो (1994(i)  एसएलआर 516) और भारत संघ बनाम उपेंद्र सिंह (994-27 एटीसी 200) के मामलों के संबंध में, उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णयों में दोहराया है कि उच्च न्यायालय या अधिकरण को अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा लिए गए निर्णय का अपने निर्णय से प्रतिस्थापित करने काअधिकार नहीं है. धारा 226 के अंतर्गत अधिकरण का अधिकारः-क्षेत्र, उच्च न्यायालय की  शक्तियों के बराबर ही है जो कि न्यायिक समीक्षा से जुड़ा है. आरोपों की शुद्धता या यथार्थता में जाना अधिकरण के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, वह केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है, यदि निर्धारित आरोप के अनुसार कदाचार का मामला न बनता हो, या अन्य  अनियमितताओं का दोषी न ठहराया गया हो या निर्धारित आरोप किसी कानून के विपरीत लगाए गए हों,

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 23.1.95 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 94 आर जी 6-87)

 

9. परिनिंदा करना

 

यदि कार्यवाहियों के अंत में यह पाया जाता है कि रेलवे सेवक पर कुछ दोष सिद्ध होते हैं, तो चेतावनी/सरकार की अप्रसन्नता/परामर्श, जो कि मान्यता प्राप्त शास्तियां नहीं हैं, अधिरोपित नहीं की जानी चाहिए. ऐसे मामलों में, कम से कम परिनिंदा की शास्ति अधिरोपित की जानी चाहिए.

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 21.1.93 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 92/आर जी 6-49 (ए) बी)


10. पदोन्नति रोके रखना

 

यद्यपि पदोन्नति रोके रखना, नियम 6 के अंतर्गत एक विनिर्दिष्ट शास्ति है तो भी वेतन वृद्धि आदि को रोके रखने की शास्ति की अवधि के दौरान पदोन्नति न होना, दो शास्तियां अधिरोपित करना नहीं समझा जाए. ऐसी परिस्थितियों में पदोन्नति न देना अतिरिक्त शास्ति नहीं है बल्कि उसके आचरण का परिणाम है.

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 22/29.10.91 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 9/आर जी 6-68)

 

11. हानि की वसूली

 

(i) कर्मचारी की ओर से अवहेलना या आदेशों के भंग आदि के कारण सरकार को हुई हानि के मामले में, हानि की वेतन से वसूली करने की शास्ति के अतिरिक्त, सक्षम प्राधिकारी एक उसी आदेश द्वारा तथा एक उसी कार्यवाही के अनुसरण में, भारतीय रेल स्थापना संहिता (1959संस्करण) के नियम 1707 के खंड (i),(ii) और (iv) तथा खंड 2(i) और (ii) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से एक (रेल सेवक (अनुशासन और अपील) नियम, 1968 के नियम (i),(ii),(iii- क),(iii-ख),(iv) तथा ( iv) में विनिर्दिष्ट शास्तियों के बराबर शास्ति देने के लिए स्वतंत्र है. इसे दोहरा दंड नहीं समझा जाएगा.

(बोर्ड का दिनांक 17.5.62 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 62 आर जी 6-26)

 

(ii) हानियों की वसूली की मात्रा अधिक होने पर, किस्तों का निर्धारण इस प्रकार किया जाए कि इससे रेल सेवक या उसके परिवार पर अनुचित बोझ न पड़े.

(बोर्ड का दिनांक 30.1.2001 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 2000 आर जी 6-64)

 

12. सुविधा पासों/सुविधा टिकट आदेशों को रोके रखना

 

(i) सुविधा पासों/टिकट आदेशों को एक वर्ष से कम की अवधि के लिए रोके रखने की शास्ति बहुत ही मामूली अपराधों तक ही सीमित रखी जानी चाहिए क्योंकि शास्ति की अवधि के दौरान होने वाली मामूली असुविधा के सिवाय यह शास्ति प्रभावी शास्ति सिद्ध नहीं होती क्योंकि बाद में जैसे ही शास्ति की अवधि पूरी होती है कर्मचारी, कैलेंडर वर्ष में देय सभी सुविधा पासों/सुविधा टिकट आदेशों का लाभ उठा सकता है.

(बोर्ड का दिनांक 27.7.61 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 6/आर जी 6-34)

 

(ii) सुविधा पासों/सुविधा टिकट आदेशों को रोके रखने की शास्ति को प्रभावी बनाने के उद्देश्य से शास्ति को विनिर्दिष्ट अवधि के लिए अधिरोपित करने की बजाय सैटों के संबंध में अधिरोपित की जानी चाहिए. उन मामलों में जहां कर्मचारी ने कैलेंडर वर्ष में देय सभी पासों/सुविधा टिकट आदेशों का लाभ पहले ही उठा लिया है, अगले वर्ष के खाते में पासों/सुविधा टिकट आदेशों को रोके रखना चाहिए.

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 14.12.66 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 66/आर जी 6-57)

 

(iii) हालांकि रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमों में रोके जाने वाले पासों/सुविधा टिकट आदेशों के सैटों की संख्या के संबंध में कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है लेकिन नियम की मर्यादा ध्यान में रखते हुए और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि यह एक छोटी शास्ति है जिसे नियमित पूछताछ के बगेर अधिरोपित किया जा सकता है, पासों/सुविधा टिकट आदेशों को काफी संख्या में नहीं रोका जाना चाहिए.

(पूर्वोत्तर रेलवे को प्रेषित दिनांक 19/25.3.97 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 97 आर जी 6-6)

 

(iv) सेवा के दौरान किए गए अपराधों के लिए, रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम के अंतर्गत शास्ति के रूप में सेवानिवृत्ति के बाद के मानार्थ पासों को नहीं रोका जा सकता. ऐसे मामलों में एकमात्र शास्ति भारतीय रेल स्थापना संहिता,  के नियम 2308 (जिसे अब रेलसेवक (पेंशन) नियम, 993 के नियम 9 में शामिल किया गया है) के अंतर्गत पेंशन संबंधी लाभों में कटौती है.

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 29.5.89 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 89 आर जी 6-56)

 

 

 

 

 

 

(iii) वेतनवृद्धि रोके रखने की शास्ति केवल उन वेतनवृद्धियों के लिए दी जाएगी जि पाने के लिए कर्मचारी, शास्ति के आदेश जारी होने की तारीख तक हकदार नहीं हुआ हो. वह वेतनवृद्धि जिसके लिए कर्मचारी शास्ति अधिरोपित किए जाने की तारा से पहले हकदार हो गया हो (लेकिन वस्तुतः आहत नही की गई हो) उसे नही रोका जा सकता है.

 

(बोर्ड का दिनांक 2.7.60 का पत्र स-ई (डी एंड ए) 60 आर जी 6-20)


(iv) जब वेतनवृद्धि रोकने को शास्ति अधिरोपित की जाती है, तो शास्ति संबंधी आदेशों के अनुसार केवल वही वेतन वृद्धियां रोको जानी चाहिए जो काल बेतनमान में सामान्य तरीके से प्रोद्भुत होती हैं. शास्ति संबंधी आदेशों से विभागीय या अन्य तकनीक परीक्षा पास करने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप प्रदान की गई अग्रिम वेतनवृद्धि (वेतनवृद्धि) प्रोद्भुतहोने में बाधा नहोँ आनी चाहिए. इसी प्रकार, उन मामलों में जहां विनिदष्ट अवधि के लिए काल वेतनमान मं निचले प्रक्रम पर अवनति को शास्ति अधिरोपित की गई हो, अग्रिम वेतनवृद्धि के प्रोद्भुत होने में बाधा नहीं होनी चाहिए.

 

(बोर्ड का 7.05.76 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 76- आर जी 6-2)


(v)  "पदिन्नति रोकने” "वेतनवृद्धियों रोकने" की शास्ति को, इनके स्वरूप के अनुसार, स्थायी तोर  पर अधिरोधित नहीं किया जा सकता. इसे अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा निर्धारित की गई. 'विनिर्दिष्ट अवधि के लिए ही अधिरोपित किया जा सकता है.

 

रेलवे  बोर्ड का दिनांक 27.8.1966 का पत्र सं- ई (डी एंड ए) 66- आर जी 6-20)

 

(vi) वेतनवृद्धियों रोकने की शास्ति एक छोटी शास्ति होते हुए भी, यदि इसे तीन वर्ष से अधिक की अवधि  के लिए अधिरोपित किया जाना हो या किसो अवधि के लिए संचवी प्रभाव सहिता
अधिरोपित किया जाना हो या शास्ति द्वारा रेलवे सेवक की पेंशन या भविष्य निधि में विशेष अंशदान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने को संभावना हो तो नियम 9 के अधीन जांच की जानी जरूर है.

 

(रेलवे  बोर्ड का दिनांक 28.2.68 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 67 आर जी 6-3 सा रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) का नियम 11(2))

 

(vii) अनुशासनिक प्राधिकारी को वेतनवृद्धियों  रोकने के आदेश देने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि संबाधत कर्मचारी को ये वेतनबृद्धियां अजित करने की संभावना बनी रहे अर्थार्त वह अपने ग्रेड के अधिकतम पर न हो. ऐसी स्थिति में, मामले को अपने आदेशों की समीक्षा और नए आदेश जारी करने के लिए अनुशासनिक प्राधिकारी के पास वापस भेज देना चाहिए.  संवोगवश यही एक स्थिति है, जह॑ प्राधिकारी अपने आदेशों को समीक्षा कर सकता है.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 4.1.83 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 82- आर जी 6-84 तथा केस नं. ई(डी एंड ए) 92-ए ई 2-2)

 

 

 

 

 

 
 

 

17. अनिवार्य सेवानिवृत्ति

 

भारतीय रेल स्थापना संहिता जिल्द II (छठा संस्करण) के नियम 802, 803 और 804 के अंतर्गत अनिवार्य सेवानिवृत्ति, समयपूर्व सेवानिवृत्ति से भिन्न है. समयपूर्व सेवानिवृत्ति
शास्ति नहीं है बल्कि इसका आदेश प्रशासनिक उपाय के रूप में दिया जाता है. यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 311 (2), जिसमें केवल बर्खास्तगी, सेवा से हटाना तथा रैंक में कमी से संबंधित शास्तियों का उल्लेख है, में अनिवार्य सेवानिवृत्ति का उल्लेख नहीं है तथापि अनिवार्य सेवानिवृत्ति को नियमों में एक बड़ी शास्ति के रूप में शामिल किया गया है और यह बर्खास्तगी तथा सेवा से हटाने की शास्ति की तुलना में कम गंभीर है.

 

18. अनिवार्य सेवानिवृत्ति, बर्खास्तगी तथा सेवा से हटाने के मामले में पेंशन/उपदान प्रदान करना

 

रेल कर्मचारी जिसे शास्ति स्वरूप सेवा से अनिवार्यतः निवृत्त किया जाता है उसे रेल सेवा (पेंशन) नियम 993 के नियम 64 में अंतर्विष्ट प्रावधानों के अनुसार पेंशन/उपदान प्रदान किया जाता है. बर्खास्त अथवा सेवा से हटाए गए रेल कर्मचारी की पेंशन और उपदान जब्त कर लिया जाता है. बहरहाल, उसे सेवा से बर्खास्त अथवा हटाने वाला सक्षम
प्राधिकारी, यदि समझे कि यह मामला विशेष रूप से विचार करने लायक है तो, रेल सेवा (पेंशन) नियम, 993 के नियम 65 के अनुसार अनुकंपा भत्ता स्वीकृत कर सकता है.

 

19. अनुशासनिक प्राधिकारी

 

इन नियमों में अनुशासनिक प्राधिकारी को विभिन्न प्रयोजनों के लिए नीचे लिखे अनुसारपरिभाषित किया गया है:-

  

(क) .किसी रेल कर्मचारी पर शास्ति लगाने के प्रयोजन के लिए, नियमों के अंतर्गत उस पर शास्ति लगाने वाला सक्षम प्राधिकारी, अनुशासनिक प्राधिकारी होगा.

  

(ख) नियम 9 (बड़ी शास्ति अधिरोपित करने अर्थात जांच आदि करने के लिए अनुसरण की जाने वाली कार्यविधि के प्रयोजन के लिए राजपत्रित तथा अराजपत्रित रेलवे कर्मचारियों के लिए सक्षम प्राधिकारी को अलग-अलग रूप से परिभाषित किया गया है.राजपत्रित कर्मचारियों के लिए नियम 6 में विनिर्दिष्ट किसी भी तरह की शास्ति (बड़ी या छोटी) लगाने के लिए सक्षम प्राधिकारी अनुशासनिक प्राधिकारी होगा. अराजपत्रित कर्मचारियों के लिए नियम 6 में विनिर्दिष्ट कोई भी बड़ी शास्ति लगाने वाला सक्षम प्राधिकारी, अनुशासनिक प्राधिकारी होगा.

 

(ग) नियम ] () (छोटी शास्ति अधिरोपित करने अर्थात्‌ आरोप ज्ञापन जारी करने, जहां कहीं आवश्यक हो जांच करने आदि, के लिए कार्यविधि) के खंड (क) और (ख) के प्रयोजन के लिए राजपत्रित तथा अराजपत्रित दोनों रेल कर्मचारियों पर किसी भी प्रकार की शास्ति लगाने वाला प्राधिकारी, अनुशासनिक प्राधिकारी होगा.

 

(घ) नियम 6 में विनिर्दिष्ट शास्तियां लगाने वाले सक्षम प्राधिकारियों का उल्लेख रेल सेवा (अनुशासन एवं अपील) नियमों की अनुसूची ।, II और III में किया गया है. बहरहाल, राष्ट्रपति किसी भी रेल कर्मचारी पर नियम 6 में उल्लिखित कोई भी शास्ति लगा सकते हैं भले ही इस प्राधिकारी का उल्लेख अनुसूची में किया गया हो या नहीं.

 

(रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमों के नियम 2(1)(ग) और 7(1),7(2))


व्याख्या

 

(i)) किसी राजपत्रित रेल कमंचारी पर नियम 6 में विनिर्दिष्ट शास्तिओं में से एक शास्ति लगाने के लिए अनुसूचियों के अनुसार सक्षम प्राधिकारी, छोटी/बड़ी शास्ति का आरोप पत्र जारी करने,नियम 9 के अंतर्गत जांच करने आदि के प्रयोजनार्थ अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य कर सकता है परंतु रेल कर्मचारी पर वह वही शास्ति लगा सकता है जिसके लिए अनुसूचियों द्वारा उसे प्राधिकृत किया गया है. अराजपत्रित कर्मचारियों के संबंध में, जहां तक छोटी शास्ति से संबंधित “कार्यवाहियों का संबंध है तो उपर्युक्त स्थिति ही लागू होगी परंतु बड़ी शास्ति की कार्यवाहियों के मामले में, कम से कम एक बड़ी शास्ति लगाने के लिए अनुसूची के अनुसार सक्षम प्राधिकारी केवल नियम 9 के प्रयोजन के लिए अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य कर सकता है.

 

(ii) अनुसूची- I में, क्षेत्रीय रेलों तथा उत्पादन इकाइयों से इतर यूनियों (रेलवे बोर्ड कार्यालय में, अ.आ.मा.सं., रेलवे प्रशिक्षण संस्थानों यथा इरिसेन, इरिसेट, इरीन और इरीमी, रेलबे स्टाफ कॉलेज, रेल भर्ती बोर्ड आदि) में अराजपत्रित कर्मचारियों से संबंधित अनुशासनिक एवं अपील प्राधिकारियों का उल्लेख है. अनुसूची-II में क्षेत्रीय रेलों तथा उत्पादन इकाइयों के अराजपत्रित कर्मचारियों के संबंध में विभिन्न येडों के रेल अधिकारियों तथा वरिष्ठ पर्यवेक्षकों की अनुशासन तथा अपील शक्तियों का उल्लेख है. अनुसूची- Iऔर ॥ में उल्लेख किया गया है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति, सेवा से हटाना और बर्खास्तगी जैसी शास्तियां केवल नियुक्ति प्राधिकारी अथवा उनके रैंक क के समकक्ष प्राधिकारी अथवा इनसे उच्चतर किसी प्राधिकारी द्वारा लगाई जा सकती हैं. अनुसूची-ा] में रेल अधिकारियों (समूह "ख" और समूह "क”) से संबंधित अनुशासन एवं अपील प्राधिकारियों का उल्लेख किया गया है. अनुसूची- I,II, और III की एक-एक प्रति अनुबंध 'क', 'ख' और 'ग' के रूप में संलग्न है.

  

(iii) रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमों की अनुसूची-ा॥ के. अंतर्गत प्रमुख विभागाध्यक्षों की अनुशासनिक शक्तियों का उपयोग, नए जोनों तथा उत्पादन इकाइयों में प्रमुख विभागाध्यक्षों के पद न होने के कारण, वरिष्ठ प्रशासनिक येड के उन अधिकारियों द्वारा किया जा सकता है जो समन्वयकर्ता विभागाध्यक्षों के रूप में या स्वतंत्र रूप से कार्य करते है और रेल प्रशिक्षण संस्थानों के निदेशकों द्वारा भी किया जा सकता है.

 

(बोर्ड का दिनांक 3..2000 और .6.2000 क॑ पत्र सं. ई (डी एंड ए) 98-आर जी  6-52)

 

(iv) यद्यपि अनुसूचियों में अनुशासनिक प्राधिकारी के स्तर का उल्लेख किया गया है तथापि प्रशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य करने वाला प्राधिकारी उसके अलावा कोई और नहीं हो सकता जिसके प्रशासनिक नियंत्रण में आरोपी कर्मचारी कार्य करता है. यदि किसी कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई चलते रहने के दौरान उसका  स्थानांतरण हो जाता है तो अनुशासनिक प्राधिकारी भी तदनुसार बदल जाएगा जो उसके नए पद के अनुसार होगा. इसके अलावा, किसी कर्मचारी के लिए केवल एक ही अनुशासनिक प्राधिकारी हो सकता है. जैसे अर्थात्‌ परिचालनिक कर्मचारी जो मंडल परिचालन प्रबंधक के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है, के लिए यह केवल मंडल परिचालन प्रबंधक ही अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य कर सकता है न कि मंडल वाणिज्य प्रबंधक या मंडल संरक्षा अधिकारी. भले ही किया गया कदाचार वाणिज्यिक नियमों अथवा संरक्षा नियमों के उल्लंघन से संबंधित हो.

 

(बोर्ड का दिनांक 28.7.62 का एकत्र रं. ई (डी एंड ए) 60-आर जी 6-30, 6.10.73 क ई (डी एंड ए) 72 आर जी 6-3 तथा 4.8.97 का ई (डी एंड ए) 94 आर जी 6-69)

 

 

(v) किसी उच्चतर पद पर स्थानापन्न रूप से कार्य करने वाले रेल कर्मचारी के मामले में अनुशासनिक प्राधिकारी का निर्धारण अनुशासनिक कार्रवाई के समय रेल कर्मचारी द्वारा स्थानापन्न रूप से धारित पद के अनुरूप किया जाएगा.

 

(रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमों का रेलवे नियम 7(3))

 

(vi) वास्तविक नियुक्ति प्राधिकारी का निर्धारण करने के लिए रिकॉड्डों अथवा नियुक्ति पत्रों के उपलब्ध न होने के मामले में, महाप्रबंधक को नियोक्‍ता प्राधिकारी के रूप में माना जाए.

 

(रेलवे बोर्ड का दिनांक 2.2.64 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 63-आर जी 6-23)

 

 

(vii) तथ्य अन्वेषण जांच अथवा दुर्घटना जांच के सदस्य अथवा अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके प्राधिकारी को अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि आरोपित कर्मचारी को आशंका रहेगी कि पहले ही अपनी राय व्यक्त कर चुका अधिकारी अनुशासनिक

 

प्राधिकारी के रूप॑ में भी अपने पूर्व निष्कषों से अलग नहीं होगा. अतः उसे न्याय नहीं मिलेगा. लेकिन, यदि रिपोर्ट में अंतिम राय निर्दिष्ट नहीं है और प्रथम दृष्टया, मात्र राय दी गई है तो वह अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य कर जांच कर सकता है. तथ्य अन्वेषण जांच अथवा दुर्घटना जांच के सदस्य या अध्यक्ष उसी मामले में जांच अधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकते  क्योंकि जांच अधिकारी वह प्राधिकारी होना चाहिए जिसने दोष के बारे में पूर्व निर्णय न किया हो, शुरू में अनंतिम रूप से भी नहीं. इसी तरह, किसी अधिकारी द्वारा सतर्कता संबंधी किसी मामले में जांच पड़ताल की गई हो और बाद में उसे कोई प्रशासनिक पद दे दिया गया है तो वह अनुशासनिक मामला उसे नहीं सौंपा जाना चाहिए और उसे उपयुक्त निर्णय के लिए अगले उच्चतर प्राधिकारी के पास भेज दिया जाना चाहिए.

 

(रेलबे बोर्ड के दिनांक 23.2.68 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 63-आर जी 6-6 जिसे दिनांक 23.5.69 के पत्र के साथ पढ़ा जाए और दिनांक 30.7.91 का पत्र सं. ई (डी एंड
ए)9] आर जी 6-62)

 

(viii)) यदि आरोपित अधिकारी का अनुशासनिक प्राधिकारी भी उसी मामले में शामिल हो तो उसे उक्त मामले में अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए. ऐसे मामले में, पदानुक्रम से अगला उच्चतर प्राधिकारी अनुशासनिक प्राधिकारी के रूप में कार्य करेगा.

(रेलवे बोर्ड के दिनांक 9.11.1990 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 90 आर जी 6-23)

 

(ix) अनुशासनिक प्राधिकारी का निर्धारण, आरोपित कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई शुरू करने के समय धारित पद के अनुसार किया जाए न कि कदाचार का आरोप लगाए जाते समय धारित पद के अनुसार.

(रेलवे बोर्ड के दिनांक 8.8.964 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 84-आर जी 6-42)

 

20. नियुक्ति प्राधिकारी

(i) रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम के नियम 20) (क) में नियुक्ति प्राधिकारी को नीचे लिखे अनुसार परिभाषित किया गया है:-

 

(क) उस सेवा, जिसमें रेल कर्मचारी उस समय सदस्य है अधिकृत अथवा सेवा के उस ग्रेड  जिसमें रेल कर्मचारी उस समय शामिल है, में नियुक्ति करने के लिए अधिकृत प्राधिकारी या

 

(ख) उस पद पर नियुक्ति करने के लिए अधिकृत प्राधिकारी, जिस पद पर रेल कर्मचारी उस समय आसीन है, या

 

(ग) ऐसी सेवा, ग्रेड अथवा पद जैसा भी मामला हो, पर नियुक्त करने वाला प्राधिकारी, अथवा

 

(घ) ऐसी कोई अन्य सेवा जिसमें रेल कर्मचारी स्थायी सदस्य है और बाद में रेल मंत्रालय के अधीन निरंतर सेवा करते हुए किसी अन्य स्थायी पद पर है तो उसे सेवा, मेड अथवा सेवा के पद पर उसे नियुक्त करने वाला प्राधिकारी, जो भी प्राधिकारी उच्चतम हो.

 

(ii) नियम 2(i) (क) के विभिन्न खंडों में बिनिर्दिष्ट प्राधिकारियों का निर्धारण करने के प्रयोजन से प्राधिकारी को रेल कर्मचारी के पद अथवा गेड तक ही सीमित रहना चाहिए और यथास्थिति खंड (क) अथवा (ख) का उपयोग करना चाहिए.

 

नियम 2(i) (क) का समय आशय और प्रयोजन भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(i) के उल्लंधन से बचना और यह सुनिश्चित करना है कि किसी कर्मचारी के विरूद्ध कार्रवाई करने वाला या तो उस श्रेणी के कर्मचारी को नियुक्त करने वाला सक्षम प्राधिकारी हो या वह प्राधिकारी जिसने वास्तव में उसे नियुक्त किया है, जो भी रैंक में उच्चतर हो.

 

यह आवश्यक नहीं है कि महाप्रबंधक किसी निम्नतर प्राधिकारियों द्वारा नियुक्त किए गए समूह 'ग' और 'घ' कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त करे/हटाए.

 

(दक्षिण मध्य रेलवे बनाम शेखर कादर मस्तान और नूकाराजा के मामले में उच्चतम न्यायालय के दिनांक 10.4.80 के निर्णय पर आधारित रेलवे बोर्ड का दिनांक 7.5.90 का पत्र सं. ई (डी एंड ए) 88 आर जी 6-12)

 

21. कार्यवाहियां प्रारंभ करने के लिए सक्षम प्राधिकारी

 

(i)  राष्ट्रपति या उनके द्वारा किसी सामान्य अथवा विशेष आदेश द्वारा शक्ति प्राप्त कोई अधिकारी किसी रेल कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई आरंभ कर सकता है या कोई वह प्रत्येक अनुशासनिक प्राधिकारी, जो किसी रेल कर्मचारी पर नियम 6 में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से कम से कम एक शास्ति लगा सकता है, भी रेल कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्यवाही शुरू कर सकता है.

 

(ii) वह अनुशासनिक प्राधिकारी जो किसी राजपत्रित रेल कर्मचारी के विरूद्ध, नियम 6 में बिनिर्दिष्ट छोटी शास्तियों में से कम से कम एक शास्ति लगाने के लिए सक्षम है, रेल कर्मचारी के  विरूद्ध बड़ी शास्ति के लिए कार्यवाही शुरू कर सकता है भले ही वह प्राधिकारी रेल कर्मचारी पर बड़ी शास्ति लगाने के लिए सक्षम न हो. लेकिन, अराजपत्रित कर्मचारियों के संबंध में बड़ी शास्ति से संबंधित कार्यवाही उसी प्राधिकारी द्वारा शुरू की जा सकती है जो कम से कम एक बड़ी शास्ति  लगाने के लिए सक्षम हो.

(रेल सेवक (अनुशासनिक एवं अपील) नियमों का नियम 8 जिसे नियम 2(i) (ग) के साथ पढ़ा जाए)

  

22. आपराधिक कार्यवाहियों के साथ-साथ अनुशासनिक कार्यवाहियां शुरू करना.

 

रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमों के अंतर्गत अनुशासनिक कार्यवाहियां तब भीशुरू की जा सकती हैं और इन्हें समाप्त किया जा सकता हे जब कर्मचारी के विरूद्ध न्यायालय मेंआपराधिक मामला लंबित हो क्योंकि कदाचार की प्रकृति और अपेक्षित साक्ष्य का स्तर, दोनों  किस्म की कार्यवाहियों में भिन्न-भिन्न होते हैं. ऐसे मामलों में कार्यवाहियां शुरू करने और इन्हेंसमाप्त करने से तब तक न्यायालय की अवहेलना नहीं होती है जब तक कि विभागीय कार्यवाहियांस्थगित करने के लिए न्यायालय द्वारा कोई आर्डर न दिया गया हो, विभागीय कार्यवाहियां स्थगितकरने से संबंधित प्रश्न के बारे में निर्णय, प्रत्येक मामले के गुण-दोष के आधार पर न्यायालय द्वारालिया जाएग, यदि आरोपित कर्मचारी न्यायालय की शरण लेता है.

 

(रैलवे बोर्ड का दिनांक 6.6.74  सं. ई (डी एंड ए) 7/ आर जी 6-36 तथा जंग बहादुरसिंह बनाम बैजनाथ तिवारी (969 () एरगीआर 34) और कुशेश्वर दुबे बनाम भारत कोकिंगकोलःलिमिटेड (ए आई आर 988 उच्चतम न्यायालय 2]8) के मामलों में उच्चतम न्यायालयके निर्णय) 

  

23. अनुशासनिक प्राधिकारी के आदेश

 

किसी अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा किसी आरोपित कर्मचारी को आरोप मुक्त करनेअथवा नियम 6 में विनिर्दिष्ट किसी शास्ति अधिरोपित करने से संबंधित आदेश उपयुक्त रूप से_सकारण आंदेश होने चाहिए और इनमें आरोपों के संबंध में अनुशासनिक प्राधिकारी के निर्णय काआधार स्पष्ट रूप से परिलक्षित होना चाहिए.